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Happy Gandhi Jayanti 2023: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के मौके पर आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है. महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi Jayanti) ने देश के लोगों में स्वतंत्रता की अलख जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी. हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल और मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने रिज मैदान पर स्थापित राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा पर माला अर्पण कर उन्हें याद किया. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का शिमला से भी गहरा नाता रहा. वे आजादी से पहले 10 बार शिमला की यात्रा पर आए. शिमला प्रवास के दौरान महात्मा गांधी मैनर विला में ठहरते थे. यह राजकुमारी अमृत कौर की संपत्ति रही है. साल 1935 में महात्मा गांधी राजकुमारी अमृत कौर के संपर्क में आए. इसके बाद से मैनर विला महात्मा गांधी का नियमित ठहराव बन गया था.
आजादी के बाद शिमला नहीं आ सके महात्मा गांधी
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के रिज मैदान पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के योगदान को याद करने के लिए प्रतिमा भी स्थापित की गई है. इस प्रतिमा के नजदीक ही पट्टिका में महात्मा गांधी की शिमला यात्रा का विवरण है. इस पट्टिका में दिए गए विवरण में साल 1939 की दो यात्राओं का जिक्र नहीं किया गया है. खास बात यह भी रही कि आजादी से पहले 10 बार शिमला की यात्रा करने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी देश आजाद होने के बाद एक भी बार शिमला की यात्रा नहीं कर सके.
मैनर विला में रुकते थे महात्मा गांधी
साल 1921 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पहली बार शिमला आए, तो वे बालूगंज के शांति कुटीर में रुके. अब इस कुटीर को शांति कुटीर के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा महात्मा गांधी क्लीवलैंड और चैडविक बिल्डिंग में भी रुके. अपनी ज्यादातर यात्राओं के दौरान महात्मा गांधी समरहिल स्थित मैनर विला में ही रुका करते थे.
शिमला को राजधानी बनाने के पक्षधर नहीं थे
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और इतिहासकार श्रीनिवास जोशी (Historian Srinivas Joshi) बताते हैं कि महात्मा गांधी को शिमला की प्रकृति से प्रेम तो था, लेकिन वे शिमला को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने के पक्षधर नहीं थे. उनका मानना था कि शिमला से देश का शासन नहीं चलाया जा सकता. इसे लेकर एक उदाहरण दिया करते थे कि अगर मुंबई में किसी व्यापारी को अपना काम चलाना है, तो वह आठवीं मंजिल पर अपनी दुकान नहीं खोल सकता. ठीक इसी तरह शिमला से भी देश को संचालित करना संभव नहीं है.
शिमला में चलने वाले मानव रिक्शा से निराश थे महात्मा गांधी
आजादी से पहले शिमला में सिर्फ तीन ही गाड़ियां होती थी. ज्यादातर लोग मानव रिक्शा से ही सफर किया करते थे. महात्मा गांधी मानव रिक्शा के भी खिलाफ थे. इस रिक्शा को चलाने में पांच लोगों की जरूरत पड़ती थी. चार लोग रिक्शा को खींचते थे, जबकि एक आदमी रिक्शा के पीछे दौड़ा करता था. जब कोई एक व्यक्ति थक जाता, तो दौड़ रहा व्यक्ति उसकी जगह ले लेता था. महात्मा गांधी को जब स्वयं मानव रिक्शा से सफर करना पड़ा तो, वे बेहद निराश हुए. उन्होंने रिक्शा खींच रहे लोगों से पूछा कि क्या तुम पशु हो? तब रिक्शा खींच रहे एक व्यक्ति ने जवाब दिया कि हम पशु तो नहीं, लेकिन हमारे साथ पेट जुड़ा है. इसके लिए हमें यह काम करना पड़ता है. हालांकि, धीरे-धीरे समय बदला और समय के साथ मानव रिक्शा का अस्तित्व ही खत्म हो गया. इतिहासकार श्रीनिवास जोशी बताते हैं कि कुछ लोगों का मत है कि मानव रिक्शा को उच्च न्यायालय के आदेश के बाद बंद किया गया, लेकिन यह सत्य नहीं है.
कब-कब शिमला आये महात्मा गांधी?
- 12 से 17 मई 1921- वायसरॉय लॉर्ड रीडिंग से खिलाफत आंदोलन, पंजाब में अशांति, सविनय अवज्ञा और स्वराज पर चर्चा की. आर्य समाज मंदिर लोअर बाजार में महिला सम्मेलन में गए. ईदगाह में जनसभा की.
- 13 से 17 मई 1931- गांधी-इरविन समझौते से उत्पन्न समस्याओं पर वायसरॉय लॉर्ड विलिंग्डन, गृह सचिव एच. डब्ल्यू एमर्सन आदि से चर्चा.
- 15 से 22 जुलाई 1931- वायसरॉय लॉर्ड विलिंग्डन से लंदन में प्रस्तावित गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने पर चर्चा.
- 25 से 27 अगस्त 1931- वायसरॉय लॉर्ड विलिंग्डन से भेंट, दूसरा समझौते पर हस्ताक्षर.
- 4 से 5 सितंबर 1939- अंग्रेजी हुकूमत की ओर से दूसरे विश्वयुद्ध में हिंदुस्तान को शामिल करने पर वायसरॉय लिनलिथगो से बातचीत.
- 26 से 27 सितंबर 1939- वायसरॉय लिनलिथगो के निमंत्रण पर द्वितीय विश्वयुद्ध से उत्पन्न स्थिति पर चर्चा.
- 29 से 30 जून 1940- वायसरॉय लिनलिथगो के निमंत्रण पर द्वितीय विश्वयुद्ध से उत्पन्न स्थिति पर फिर चर्चा.
- 27 से 30 सितंबर 1940- वायसरॉय लिनलिथगो के निमंत्रण पर द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद भारत की आजादी पर मंत्रणा.
- 24 जून से 16 जुलाई 1945- वायसरॉय लॉर्ड वेवल की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक शिमला कॉन्फ्रेंस में वायसरॉय के आग्रह पर गांधी की बतौर सलाहकार शिरकत.
- 2 मई से 14 मई 1946- कैबिनेट मिशन के आमंत्रण पर शिमला आगमन.
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